Russia Ukraine War 2025: Trump Ki Khasi Saheba Ne Bharat Par Lagaya Bada Arop!

Russia Ukraine War

By Aapka Lucknowi Dost, Geopolitics Ke Purane Player Ke Nazariye Se

नमस्कार दोस्तों! आपका पुराना दोस्त फिर हाज़िर है लखनऊ की गर्मागर्म सियासी चर्चा लेकर। आज बात करेंगे एक ऐसे Russia Ukraine war 2025 से जुड़े विवाद की जिसने दिल्ली से वाशिंगटन तक सनसनी फैला दी। मैं पिछले 10 साल से अमेरिका-भारत संबंधों पर नज़र रखता आया हूँ, तो समझिए ये मामला सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि आने वाले समय का अहम सियासी संकेत है। चाय तैयार है? तो शुरू करते हैं!

कौन हैं ये ‘खास साहिबा’ और क्या है पूरा मामला?

Russia Ukraine war 2025 के बीच अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की करीबी सहयोगी केलियन कॉनवे (Kellyanne Conway) ने एक इंटरव्यू में भारत पर गंभीर आरोप लगाया। उनका कहना है, “भारत का रूस से सस्ता तेल खरीदना ‘कतई स्वीकार्य नहीं’ (not acceptable), क्योंकि इसी पैसे से पुतिन यूक्रेन में जंग लड़ रहे हैं!” सीधे शब्दों में – Trump aide accuses India of financing Russia’s war!

ये बयान कोई आकस्मिक नहीं। कॉनवे ट्रम्प के प्रशासन में सीनियर काउंसलर रह चुकी हैं। अमेरिकी चुनाव नज़दीक आते ही ऐसे बयानों का मतलब साफ है: “अगर ट्रम्प फिर जीते, तो भारत के लिए नई मुश्किलें खड़ी होंगी।” ये Russia Ukraine war 2025 को लेकर अमेरिकी रिपब्लिकन पार्टी की सोच का पर्दाफाश है।

भारत पर इतना भारी आरोप क्यों? पेट्रोल-डीजल का गणित

चलिए अब इसकी जड़ समझते हैं। जब Russia Ukraine war 2025 शुरू हुआ, तो अमेरिका/यूरोप ने रूस पर प्रतिबंध (sanctions) लगा दिए। मकसद था – पुतिन की कमर तोड़ना! पर दिक्कत ये हुई कि रूस ने तेल भारी छूट (35-40% सस्ता!) पर बेचना शुरू कर दिया। भारत जैसा दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक, इस ऑफर को कैसे नज़रअंदाज़ करता?

यहाँ भारत की मजबूरी है:

  • हमारी 85% जरूरत आयात से पूरी होती है।

  • सस्ता रूसी तेल = पेट्रोल-डीजल की कीमतें कंट्रोल में रखना।

  • विदेश मंत्री जयशंकर का स्पष्ट स्टैंड: “हम यूरोप के लिए अपनी जनता की थाली नहीं बर्बाद कर सकते!”

पर कॉनवे जैसे लोग मानते हैं कि भारत का ये कदम प्रतिबंधों को कमजोर कर रहा है। उनका आरोप है – “तेल खरीद = पुतिन की तोपों में तेल डालना!” ये Russia Ukraine war 2025 को लेकर पश्चिम का नया नैरेटिव बन गया है।

क्या सच में भारत रूस की ‘मदद’ कर रहा है?

ये सवाल ही गलत है दोस्तों! भारत ने कभी रूस के हमले का समर्थन नहीं किया। हम तो बार-बार शांति और बातचीत की वकालत करते आए हैं। असल मुद्दा है – “क्या अपनी जनता की जेब बचाना गुनाह है?”

इतिहास याद कीजिए:

  • 1971 की जंग में रूस (तब USSR) ने भारत का साथ दिया था।

  • आज भी 60% रक्षा उपकरण रूस से आते हैं।

  • अचानक ऐसे पुराने दोस्त को धोखा देना कूटनीतिक आत्मघाती होता!

भारत की कोशिश हमेशा संतुलन बनाने की रही है: “ना तो नाटो का विरोधी, ना ही रूस का दुश्मन।” पर Russia Ukraine war 2025 के इस दौर में ये बैलेंसिंग एक्ट मुश्किल होता जा रहा है।

अमेरिका का ‘डबल गेम’: चिंता या दबाव का हथियार?

सच तो ये है कि जब Russia Ukraine war 2025 शुरू हुआ, तो यूरोप के देश महीनों तक रूसी गैस खरीदते रहे। जर्मनी ने तो 2023 तक रूस से 40% गैस इम्पोर्ट की! अमेरिका खुद रूसी यूरेनियम खरीदता है (2024 में $1.2 बिलियन का आयात!)। फिर सिर्फ भारत को ही टारगेट क्यों?

दो कारण साफ दिखते हैं:

  1. जियोपॉलिटिकल दबाव: अमेरिका चाहता है भारत पूरी तरह उसके “चाइना विरोधी गुट” में शामिल हो जाए। रूस से दोस्ती इस रास्ते की रुकावट है।

  2. चुनावी रणनीति: ट्रम्प टीम को “कड़े रुख” दिखाने से कंजरवेटिव वोटर खुश होते हैं। Trump aide accuses India जैसे बयान उन्हें इलेक्टोरल फायदा देते हैं।

ये US-India relations में एक कड़वा सच है: “जब तक भारत अमेरिका की शर्तों पर चलेगा, दोस्ती रहेगी!”

2024-25 का चुनावी समीकरण: दोनों देशों की जंग!

इस विवाद का सबसे दिलचस्प पहलू है – चुनावी राजनीति का असर। अमेरिका में नवंबर 2024 का चुनाव है, और भारत में अभी नई सरकार बनी ही है। ऐसे में दोनों तरफ सियासी दांव चल रहे हैं:

  • ट्रम्प की टीम का संदेश: “हम भारत जैसे ‘गुटनिरपेक्ष’ देशों पर नरम नहीं रहेंगे!”

  • भारत सरकार की चुनौती: बिना अमेरिका को नाराज किए रूस से तेल डील जारी रखना।

मोदी सरकार के लिए ये सेंसिटिव मोड़ है। एक गलत कदम Russia Ukraine war 2025 के इस दौर में भारत को अंतरराष्ट्रीय अलग-थलग कर सकता है। पर दबाव में झुकना? ये विकल्प नहीं हो सकता!

भारत का जवाब और आगे का रास्ता

अभी तक भारत सरकार ने कॉनवे के बयान पर सीधा जवाब नहीं दिया। पर विदेश मंत्री जयशंकर पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं: “यूरोप की समस्याएं पूरी दुनिया की नहीं हैं। हम अपने नागरिकों के हित सर्वोपरि रखेंगे।”

आगे की रणनीति क्या होगी?

  • तेल डायवर्सिफिकेशन: सऊदी, इराक और अमेरिका से आयात बढ़ाना।

  • रूस के साथ रुपये में ट्रेड: डॉलर पर निर्भरता घटाना।

  • यूक्रेन को मानवीय सहायता: युद्ध विरोधी छवि मजबूत करना।

ये Russia Ukraine war 2025 का सबसे बड़ा सबक है: “अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा किसी और के एजेंडे से कम महत्वपूर्ण नहीं होती।”

अंतिम बात: दोस्ती की कसौटी

दोस्तों, अंतरराष्ट्रीय राजनीति में “दोस्त” और “दुश्मन” के बीच की लकीर बहुत पतली होती है। Russia Ukraine war 2025 ने भारत के सामने वो मुश्किल चुनौती रख दी है जहाँ:

  • एक तरफ अमेरिका जैसा ताकतवर साथी है,

  • दूसरी तरफ रूस जैसा पुराना विश्वसनीय सहयोगी।

कॉनवे का बयान इसी टकराव का संकेत है। पर भारत की कूटनीति हमेशा से “ना पूरी तरह किसी के साथ, ना पूरी तरह खिलाफ” वाली रही है। ये वक़्त इसी बैलेंसिंग एक्ट को बनाए रखने का है।

फिलहाल, दिल्ली और वाशिंगटन दोनों जगह नज़रें इस बात पर टिकी हैं: “क्या भारत इस जटिल दौर में अपनी स्वतंत्र विदेश नीति कायम रख पाएगा?” जवाब आने वाले महीने ही बताएंगे। तब तक के लिए, Tazakhabhar.com पर बने रहिए ताज़ा अपडेट्स के लिए!

“ग्लोबल पॉलिटिक्स का खेल है भाई – जिसकी लाठी, उसकी भैंस! पर भारत की नीति साफ है: लाठी से डरें नहीं, अपनी भैंस भी बचाए रखें!”
– आपका लखनऊवी दोस्त, जो Russia Ukraine war 2025 के हर मोड़ पर नज़र रखे हुए है।

(ये भी पढ़ें: Russia Ukraine war 2025 में भारत की चुनौतियाँ | तेल के दामों का आम आदमी पर असर)

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